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Savitribai Phule Biography in Hindi: भारत में हर साल 3 जनवरी को सावित्रीबाई फुले जयंती (Savitribai Phule Jayanti) के रूप में मनाया जाता है. सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले भारत की प्रथम महिला शिक्षिका (India First Feamle Teacher), समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं. उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Govindrao Phule) के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए. उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत भी माना जाता है. आज हम इस लेख के माध्यम से महान समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले के जीवन पहलू प्रकाश डालेगे.
Savitribai Phule Biography in Hindi
नाम | सावित्रीबाई फुले |
जन्म तिथी | 3 जनवरी 1831 |
जन्म स्थान | नायगांव जिला – सतारा राज्य – महाराष्ट्र |
कास्ट | माली समुदाय |
नागरिकता | भारतीय |
माता का नाम | लक्ष्मी |
पिता का नाम | खन्दोजी नैवेसे |
महज 9 साल की उम्र में हो गया था विवाह
ब्रिटिश शासन के दौरान महाराष्ट्र के सतारा जिले के नायगांव में जन्मी माता सावित्रीबाई फुले (Mata Savitribai Phule) अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटी थी. परिजनों ने महज 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले की शादी उनसे 4 साल बड़े ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ कर दी थी.

जब सावित्रीबाई की शादी हुई थी, उस समय वह पढ़ना-लिखना नहीं जानती थी लेकिन ज्योतिराव फुले चाहते थे कि उनकी पत्नी भी पढ़े-लिखे. ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) भी शादी के दौरान कक्षा तीन के छात्र थे. इसलिए उन्होंने सावित्रीबाई का पढ़ाई के प्रति उत्साह बढ़ाया और तमाम सामाजिक बुराइयों की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की.
सावित्रीबाई फुले ने पति के कहने पर पढ़ाई का मन बनाया और स्कूल जाने लगीं, लेकिन पढाई के दौरान सावित्रीबाई फुले को बहुत सी कठिन परेशानियों का सामना करना पड़ा. सावित्रीबाई फुले जब भी स्कूल जाती थीं, लोग उन पर अभद्र टिप्पणी करते तथा कीचड़ और कंकड़-पत्थर फेंकते थे. कुछ लोग नहीं चाहते थे कि वह पढ़ाई करें, क्यूंकि उस समय देश में छुआ-छूत, सती प्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह जैसी कुरीतियां हावी थीं. कई बार तो सावित्रीबाई लहूलुहान भी हो जाया करती थी.
"लेकिन सावित्रीबाई फुले ने हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य पर डटी रही. एक दिन ऐसा भी आया, जबकि वह देश की पहली महिला शिक्षक बनीं. बता दे कि सावित्रीबाई फुले ने पुणे के टीचर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट से शिक्षक की उपाधि हासिल की थी"
"सावित्री ने अपने पिता को भी एक दिन कहा था कि सावित्रीबाई एक दिन पढ़-लिखकर भी दिखााएगी. उनके पिता कहते थे कि पढ़ाई सिर्फ ऊंची जातियों के लिए है लेकिन सावित्रीबाई ने अपने पिता की इस बात को गलत साबित करके दिखाया."
पुणे के भिडे वाडा में खोला देश का पहला महिला स्कूल
1848 में सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) और उनके पति ज्योतिराव फुले ने ब्रिटिश शासन के दौरान पुणे के भिडे वाडा में लड़कियों के लिए देश का पहला बालिका स्कूल खोला. स्कूल में शुरू में सिर्फ नौ लड़कियां ही थीं लेकिन धीरे-धीरे संख्या बढ़कर 25 हो गई. इस स्कूल में सावित्रीबाई फुले प्रधानाध्यापिका थीं. ये स्कूल सभी जातियों की लड़कियों के लिए खुला था. दलित लड़कियों के लिए स्कूल जाने का ये पहला अवसर था.
लड़कियों को पढ़ाने की पहल के लिए सावित्रीबाई फुले को पुणे की महिलाओं का जबरदस्त विरोध भी झेलना पड़ा था क्योंकि उन्हें लगता था कि लड़कियों को पढ़ाकर सावित्रीबाई धर्मविरुद्ध काम कर रही हैं. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि सावित्रीबाई जब बच्चो को पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थी तो पुणे की महिलाएं उन पर गोबर और पत्थर फेंकती थीं. वह अपने साथ एक जोड़ी कपड़ा साथ लेकर जाती थीं और स्कूल पहुंचकर गोबर और कीचड़ से गंदे हो गए कपड़ों को बदल लेती थीं.
उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा था कि उन्होंने देशभर में लड़कियों की पढ़ाई के लिए एक के बाद एक कुल 18 स्कूलों की स्थापना की. उनके स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में वेद और शास्त्र जैसे ब्राह्मणवादी ग्रंथों के बजाय गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन शामिल थे. एक दिन ऐसा भी आया, फुले दंपत्ति के इस योगदान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी सम्मानित किया.
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महिलाओं के उत्थान तथा छुआछूत के खिलाफ उठाई आवाज
इसके बाद 1852 में सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) ने समाज का महिलाओ के प्रति नज़रिया बदलने के लिए और महिलाओं के अधिकारों के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए महिला सेवा मंडल भी खोला. उन्होंने गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए एक देखभाल केंद्र भी खोला. इस केंद्र को ‘बालहत्या प्रतिभाबंधक गृह’ कहा जाता था.
सावित्रीबाई फुले दलित महिलाओं के उत्थान तथा छुआछूत के खिलाफ भी आवाज उठाने में कभी पीछे नहीं रही. कई बार एक बड़ा वर्ग उनके खिलाफ खड़ा हो जाता था. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब वह अपने घर के पास बने कुएं में पानी भरने के लिए जाती थीं, तो एक बड़ा वर्ग उनका काफी विरोध करता था.
इस विरोध से तंग आकर सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले (Jyotirao Phule) के साथ मिलकर अपने घर में ही एक कुआं बना डाला और सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने इस कुएं को दलितों के लिए भी खोल दिया. उनका यह काम एक मिसाल बना. सावित्रीबाई फुले केवल जातिगत कुरीतियों का ही नहीं, बल्कि समस्त महिलाओं पर हो रहे अत्याचार व अन्याय के खिलाफ डटकर मुकाबला करती थीं. उन्होंने संकल्प लिया था कि वह महिलाओं के कल्याण के लिए जीवन रहने तक सामाजिक कुरीतियों से लड़ती रहेंगी. वह शिक्षक होने के साथ – साथ समाज सुधारक भी थीं.
विधवाओं के लिए खोला आश्रम
यह 1854 की बात है, उस समय महिलाओं की स्थिति बहुत दयनीय थी. उस समय काफी महिलाएं, विधवाएं और बाल-बहू बेघर हो चुकी थी क्यूंकि उनके परिवार वालों ने ही उन्हें बेघर कर दिया था. सावित्रीबाई फुले से महिलाओ की यह दुर्दशा देखी न गई ऐसी बेघर महिलाओ के लिए एक आश्रम की नींव डाली. सावित्री बाई ने सैकड़ों निराश्रित महिलाओं, विधवाओं और उन बाल बहुओं के आंसू पोछे, जिनको उनके परिवार वालों ने ही बेघर कर दिया था. वह अपने आश्रम में रहने वाली सभी महिलाओ को समान भाव से पढ़ाती-लिखाती भी थीं.
बताया जाता है कि एक दिन सावित्रीबाई फुले का सामना ऐसी विधवा महिला से हुआ जो आत्महत्या करने जा रही थी और यह महिला कोई और नहीं बल्कि काशीबाई थी. काशीबाई एक ब्राह्मण थी. उस समय काशीबाई गर्भवती भी थी. उन्होंने काशीबाई को काफी समझाया और लोकलाज से मुक्त कर अपने आश्रम ले आई. काशीबाई ने उसी आश्रम में अपने बच्चे को जन्म दिया. सावित्रीबाई ने काशीबाई के बच्चे का नाम यशवंत रखा और उसे अपना दत्तक पुत्र बना लिया. पढ़ना और पढ़ाना तो सावित्री के संस्कार थे, इसलिए यशवंत भी पढ़-लिखकर एक दिन डॉक्टर बन गए.
उन्होंने अंतरजातीय विवाह को भी बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए। उनका पूरा जीवन समाज के लिए संघर्ष करते हुए बीता. सावित्रीबाई फुले भारत के नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता भी बनीं. वह हमेशा लक्ष्य बनाकर चलती थीं. सावित्रीबाई को भले ही किसी वर्ग का विरोध करना पड़ा, लेकिन उन्होंने किसी को दुख पहुंचाने वाला काम नहीं किया. उनके आश्रय में सभी महिलाएं सम्मानित थीं.
निधन
1890 में सावित्रीबाई के पति ज्योतिराव का निधन हो गया. यहां भी उन्होंने सामाजिक नियमों को किनारे कर पति की चिता को अग्नि दी. सेवाभाव तो सावित्रीबाई की रगों में भरा था। 1897 में जब पूरे महाराष्ट्र में प्लेग फैला था, तब भी वह लोगों की मदद में लगी थीं. इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया और इसी कारण से 10 मार्च 1897 को सावित्रीबाई की मौत हुई। उनका यह बलिदान कभी भुलाया नहीं जा सकता है.
एक नज़र सावित्रीबाई फुले के कुछ अनमोल विचारो पर भी
दलित औरतें शिक्षा की तब और अधिकारी हो जाती है
जब कोई उनके ऊपर जुल्म करता है
इस दास्तां से निवारण का एकमात्र मार्ग है शिक्षा
यह शिक्षा ही उचित अनुचित का भेद कराता है
अगर पत्थर पूजने से बच्चे होते तो नर नारी शादी ही क्यों रचाते
देश में स्त्री साक्षरता की भारी कमी है
क्योंकि यहां की स्त्रियों को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया
आखिर कब तक तुम अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन करोगी
देश बदल रहा है इस बदलाव में हमें भी बदलना होगा
शिक्षा का द्वार जो पितृसत्तात्मकविचार ने बंद किया है उसे खोलना होगा
कब तक तुम गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी रहोगी
उठो और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करो
समाज तथा देश की प्रगति तब तक नहीं हो सकती
जब तक कि वहां कि महिलाएं शिक्षित ना हो
स्त्रियां केवल घर और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी है
वह पुरुषों से बेहतर तथा बराबरी का कार्य कर सकती है
स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, पाठशाला ही इंसानों का सच्चा गहना है
बेटी के विवाह से पूर्व उसे शिक्षित बनाओ ताकि वह अच्छे बुरे में फर्क कर सके
शिक्षा स्वर्ग का द्वार खोलती है, स्वयं को जानने का अवसर देती है
उसका नाम अज्ञान है, उसे धर दबोचो, मज़बूत पकड़कर पीटो और उसे जीवन से भगा दो
FAQ
साल 1840 में महज 9 साल की उम्र में सावित्रीबाई फुले का विवाह उनसे 4 साल बड़े ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ हुआ था.
सावित्रीबाई फुले ने अपने जीते जी महिलाओं के अधिकारों के लिए कई सराहनीय कार्य किए जिनमें से कुछ प्रमुख है. बालिकाओ की शिक्षा के लिए स्कूलो की स्थापना, बेघर विधवाओ और बाल बहुओ के लिए आश्रम खोलना, गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए देखभाल केंद्र खोलना आदि.
भारत की पहली महिला शिक्षक महान समाज सुधारिका सावित्रीबाई फुले है.
भारत देश में लड़कियों के लिए सबसे पहला स्कूल महान समाज सुधारक सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे (महाराष्ट्र) के भिडे वाडा में खोला था.
सावित्रीबाई फुले के पति का नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था. इनके समाज सुधारक कार्यों की वजह से लोग इन्हें महात्मा फुले के नाम से भी पुकारते थे.
सावित्रीबाई फुले की मृत्यु 10 मार्च 1897 को प्लेग महामारी के कारण हुई थी.
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